रीवा के मोहल्लों में बसी है समृद्ध ऐतिहासिक विरासत, कई मोहल्लों के नाम छिपाते हैं रोचक कहानियां
रीवा।
रीवा शहर का इतिहास सिर्फ राजाओं और किलों तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां के मोहल्लों के नाम और उनकी उत्पत्ति भी उतनी ही रोचक और ऐतिहासिक हैं। कभी आम के बागानों से बसे मोहल्ले, तो कहीं पहलवानों के अखाड़े, अब राजनीति के केंद्र बन चुके हैं। शहर के कई मोहल्लों के नाम राजशाही काल में रखे गए थे, जो उनके कार्य, प्रकृति और बसावट के अनुसार निर्धारित किए गए थे।
गामा पहलवान का अखाड़ा बना राजनीति का अखाड़ा
आज जहां अमहिया मोहल्ला राजनेताओं का गढ़ बन चुका है, वहीं कभी यही स्थान गामा पहलवान के अखाड़े के लिए प्रसिद्ध था। बताया जाता है कि उस अखाड़े में गामा पहलवान कुश्ती लड़ते थे और आज भी उनके द्वारा उपयोग किया गया फावड़ा वहीं मौजूद है। लेकिन नई पीढ़ी इस गौरवशाली इतिहास से अनजान है।

मोहल्लों के नाम और उनसे जुड़ी कहानियां
अमहिया नाम आम के बागानों से पड़ा, वहीं घोघर मोहल्ला, जो कभी ‘गोघर’ था, वहां गायों को बांधा जाता था। इतिहासकारों के अनुसार, महाराजा वेंकटरमन सिंह ने गोशाला बनवाई थी, जिसके बाद यह मोहल्ला बस गया और नाम बदलकर ‘घोघर’ हो गया।
इसी तरह,
उपरहटी – ऊपरी बाजार होने की वजह से नाम पड़ा।
तरहटी – निचली बस्ती थी, hence ‘तरहटी’।
पाण्डेयन टोला – जहां ब्राह्मणों का निवास था।
मालियान टोला – माली समुदाय के निवास के कारण नाम पड़ा।
चिकान टोला – जहां मांस काटने वाले रहते थे।
बिछिया – नदी किनारे स्थित होने से नाम पड़ा।
लखोरीबाग – यहां लाखों आम के पेड़ थे।
पिपरिया सड़क बनी कॉलेज रोड
एक समय कॉलेज चौराहे से भगवान शीत भंडार तक की सड़क ‘पिपरिया रोड’ के नाम से जानी जाती थी, क्योंकि दोनों ओर पीपल के पेड़ थे। समय के साथ सड़क चौड़ीकरण में पेड़ हटा दिए गए और अब यह ‘कॉलेज मार्ग’ कहलाता है।
घोघर का एक और किस्सा
लोककथाओं के अनुसार, महाराजा व्यंकटरमन सिंह एक बार हरिहरपुर घोड़ा खरीदने गए थे। वहां उन्होंने कसाई घरों के बाहर बंधी गाएं देखीं, जिन्हें काटा जाना था। महाराजा ने सभी गाएं खरीद लीं और उन्हें लाकर वर्तमान घोघर मोहल्ले में गोशाला स्थापित की। तभी इस क्षेत्र को ‘गोघर’ नाम मिला, जो कालांतर में ‘घोघर’ बन गया।
पुरानी पहचान खोते मोहल्ले
आज भी शहर में कई ऐसे मोहल्ले हैं जो अपने पारंपरिक नाम से पहचाने जाते हैं, लेकिन कुछ का नाम बदलकर राजनीतिक या आधुनिक नामों से जोड़ दिया गया है। इतिहास अब सिर्फ दस्तावेज़ों में सीमित है, जबकि नई पीढ़ी इस सांस्कृतिक विरासत से अनभिज्ञ होती जा रही है।


