नई रिसर्च में सामने आया है कि मोबाइल और स्क्रीन टाइम की वजह से लोगों की नींद बुरी तरह प्रभावित हो रही है। आज के समय में केवल 35% लोग ही रोजाना 8 घंटे की पूरी नींद ले पा रहे हैं। दिनभर की थकान के बाद रात में लोग सोशल मीडिया, वीडियो, गेम्स या चैटिंग में व्यस्त हो जाते हैं।

नॉर्वे में हुई एक ताज़ा स्टडी के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति रात में एक घंटे तक मोबाइल या टैबलेट का इस्तेमाल करता है, तो उसकी नींद में औसतन 24 मिनट की कटौती हो सकती है। इतना ही नहीं, इंसोम्निया यानी अनिद्रा का खतरा भी 59% तक बढ़ जाता है।
रिसर्च में खासकर 18 से 24 साल के युवाओं की डिजिटल एक्टिविटी जैसे सोशल मीडिया ब्राउज़िंग, म्यूजिक सुनना, ई-बुक्स पढ़ना और वीडियो गेम खेलने का विश्लेषण किया गया। अमेरिका में जहां 33% वयस्कों की नींद असंतुलित पाई गई, वहीं युवाओं में यह आंकड़ा 38% तक पहुंच गया है। भारत में भी मोबाइल का अत्यधिक उपयोग एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है।
ब्लू लाइट नींद की क्वालिटी पर डाल रही है असर
विशेषज्ञों के अनुसार, मोबाइल और टैबलेट जैसी डिवाइसेज से निकलने वाली नीली रोशनी (ब्लू लाइट) हमारे दिमाग को भ्रमित कर देती है। यह रोशनी शरीर के नींद लाने वाले हार्मोन मेलाटोनिन को दबा देती है, जिससे दिमाग सक्रिय रहता है और नींद आने में कठिनाई होती है। सिर्फ ब्लू लाइट ही नहीं, किसी भी तेज़ रोशनी में देर तक रहने से नींद में खलल आ सकता है।
बच्चों पर भी पड़ रहा है गहरा असर
एक अध्ययन से यह भी पता चला है कि अगर बच्चों के कमरे में मोबाइल या टैबलेट रखा हो यदि उसका इस्तेमाल न भी हो तो भी उनकी नींद प्रभावित हो सकती है। बच्चों की उम्र में मानसिक और भावनात्मक संवेदनशीलता ज्यादा होती है, और देर रात तक स्क्रीन एक्टिविटी उनकी नींद के समय यानी बॉडी क्लॉक को बिगाड़ देती है।
विशेषज्ञों की सलाह है कि बच्चे सोने से पहले डिजिटल डिवाइसेज से दूर रहें। इसके बजाय किताबें पढ़ना, कहानी सुनना या हल्का संगीत सुनना बेहतर विकल्प हो सकते हैं।


