सीहोर | बुधनी | विशेष रिपोर्ट
सारू-मारू एक ऐसा ऐतिहासिक स्थल है, जो न केवल बौद्ध धर्म की गहराइयों से जुड़ा है, बल्कि सम्राट अशोक और उनके पुत्र महेंद्र की यादों को भी सहेज कर रखे हुए है। मध्यप्रदेश के सीहोर जिले की बुधनी तहसील के ग्राम पान गुराड़िया के पास स्थित यह पुरातात्विक स्थल आज भी इतिहास प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए कौतुहल का विषय बना हुआ है।

प्राकृतिक गुफाएं, शांति के स्तूप और प्राचीन भित्तिचित्र
यह क्षेत्र लगभग 50 एकड़ में फैला हुआ है, जहां 25 से अधिक बौद्ध स्तूप, प्राकृतिक गुफाएं और सुंदर शैलचित्र विद्यमान हैं। गुफाओं की दीवारों पर स्वस्तिक, त्रिरत्न, और कलश जैसे प्रतीकों की छवियां बौद्ध कला की जीवंत झलक देती हैं।
सम्राट अशोक की मौजूदगी के प्रमाण

इस स्थल पर मिले अशोक के दो शिलालेख न केवल इसकी ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाते हैं, बल्कि यह भी प्रमाणित करते हैं कि सम्राट अशोक स्वयं यहां आए थे। एक शिलालेख में उनके पुत्र महेंद्र की यात्रा का भी उल्लेख मिलता है।
सांची से 120 किलोमीटर दूर, बौद्ध तीर्थ का भव्य केंद्र
सारू-मारू, प्रसिद्ध बौद्ध स्थल सांची से मात्र 120 किमी दूर है। यह माना जाता है कि यह स्थल महामोद्गलायन और सारीपुत्र जैसे बुद्ध के प्रमुख शिष्यों के समय का है।
संरक्षण में जुटा है राष्ट्रीय पुरातत्व विभाग

इतिहास की इस अमूल्य धरोहर का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा किया जा रहा है। वहीं, तालपुरा जैसे नजदीकी स्थलों पर भी बुद्धकालीन स्तूपों के प्रमाण मिलते हैं, जो इस क्षेत्र को “बुद्धनगरी” के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं।
आइए, जानें अपने इतिहास को
सारू-मारू सिर्फ एक पुरातात्विक स्थल नहीं, बल्कि भारत के प्राचीन बौद्ध गौरव की जीवंत गवाही है। ऐसे धरोहरों को देखना, जानना और संरक्षित करना हम सबकी जिम्मेदारी है।


