एक बोरी खाद की कीमत आप क्या जाने साहब
रात का सन्नाटा, ठंडी हवाएं और लंबी लाइन में खड़ा वह किसान, जिसकी आंखों में थकान नहीं बल्कि उम्मीद तैरती है कि शायद सुबह होते ही उसे एक बोरी खाद मिल जाएगी। यह दृश्य किसी फिल्म का नहीं बल्कि हमारे गांव.कस्बों में हर साल दोहराई जाने वाली एक कड़वी हकीकत है। और विडंबना देखिए सरकार दावा करती है पर्याप्त खाद का भंडारण है। सवाल यह है कि भंडारण किसके लिए है?
कृषि विभाग की रिपोर्टों और भाषणों में तो व्यवस्थाएं चाक.चौबंद नजर आती हैं। लेकिन जमीनी हकीकत खाद वितरण केंद्रों की धूल में लिपटी हुई पड़ी है। किसान घंटों नहीं बल्कि रात भर लाइन में खड़े रहते हैं। कभी टोकन की उम्मीद में तो कभी ट्रक के आने की। उन्हें नहीं पता कि किस पल स्टॉक खत्म का बोर्ड टंग जाएगा। क्या यह अमृतकाल की तस्वीर है या फिर अनदेखी आपदा की एक झलक। बड़ी आसानी से यह कह देना कि खाद की कोई कमी नहीं है।
एक प्रकार से उस किसान के संघर्ष का मज़ाक है जो दिन. रात खेत में पसीना बहाता है और फिर भी खाद के लिए भीख मांगता फिरता है। क्या खाद वितरण केंद्र पर लगी भीड़, लाठीचार्ज और भगदड़ प्रशासन की चूक नहीं दर्शाती।
सच तो यह है कि यदि इस समय कोई चुनाव नजदीक होता तो शायद स्थिति कुछ और होती। तब खाद भी समय पर पहुंचती और व्यवस्था भी चुस्त नजर आती। तब शायद जनप्रतिनिधि खुद वितरण केंद्रों पर औचक निरीक्षण करते और तस्वीरें खिंचवाते। पर अफसोस किसान की जरूरतों का कोई मतदान मूल्य नहीं है।
यह समय है सिर्फ कागज़ी आंकड़ों से नहीं बल्कि जमीनी सच्चाई से नीति बनाने का है। अगर किसान ही खाद के लिए संघर्ष करता रहेगा तो अन्नदाता का सम्मान केवल नारे बनकर रह जाएगा। प्रशासन को चाहिए कि वह सब ठीक है की रट छोड़कर किसानों की आंखों में झांककर देखे,वहां नींद नहीं, सिर्फ चिंता भरी होती है।


