नेता से लेकर ठेकेदार तक हूटर के शौकीन
भोपाल।
हूटर जो आपातकालीन सेवाओं प्रशासनिक अमले और कानून व्यवस्था की गाड़ियों का प्रतीक माना जाता है अब शौक और शो ऑफ का साधन बन गया है। नेता हो या उनके सिपहसलार या फिर ठेकेदार या संदिग्ध कारोबारी हर कोई हूटर लगाकर सड़कों पर रौब झाड़ रहा है। स्थिति ये है कि अब अवैध कामों में लिप्त वाहन भी हूटर लगाकर वीआईपी एंट्री ले रहे हैं।
कानून क्या कहता है
हूटर लगाने की अनुमति केवल पुलिस, एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड, मजिस्ट्रेट न्यायिक अधिकारियों और कुछ उच्च प्रशासनिक पदों के वाहनों को ही है। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2013 में लाल नीली बत्ती और हूटर के दुरुपयोग पर सख्त रोक लगाई है।
जमीनी हकीकत क्या है
शहर की सड़कों पर दौड़ती लग्जरी गाड़ियां हूटर बजाती हैं जिनके मालिक खुद को नेता का करीबी बताकर जांच से बच निकलते हैं। स्थानीय सूत्रों के अनुसार शराब, कोरेक्स और अवैध खनन सामग्री की आपूर्ति करने वाले वाहनों में भी हूटर लगे मिलते हैं ताकि रास्ते में कोई उन्हें न रोके।
हूटर से सडक पर असर क्या
हूटर की आवाज सुनते ही आम जनता भयभीत रहती है। सड़क पर हूटर सुनते ही रास्ता छोड़ देती है यह सोचे बिना कि गाड़ी में बैठा व्यक्ति अधिकारी है या कोई रसूखदार। इससे कानून का सम्मान घटता है और असली आपातकालीन वाहनों के लिए रास्ता मिलना कठिन हो जाता है।
प्रशासन के लिए चुनौती
हूटर बजाने वाली लक्जरी गाड़ियां प्रशासन के लिए चुनौती है। क्या प्रशासन ऐसे हूटरधारी गाड़ियों की सूची सार्वजनिक करेगा। क्या पुलिस नियमित जांच कर यह सुनिश्चित करेगी कि हूटर सिर्फ अधिकृत वाहनों में हों। क्या ऐसे अवैध वाहनों की जब्ती व चालान सुनिश्चित किए जाएंगे।
इस पर रोक लगनी चाहिए
जब हूटर सिस्टम के हिस्से की बजाय रुतबे का प्रतीक बन जाए तो समझिए कानून गाड़ी में नहीं शो ऑफ में बैठा है। प्रशासन को चाहिए कि वह हूटर संस्कृति पर सख्त कार्रवाई करे वरना एक दिन असली इमरजेंसी को भी रास्ता नहीं मिलेगा।


