पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्री निवास तिवारी की प्रतिमा अनावरण, शताब्दी समारोह ने कांग्रेस को दी नई ऊर्जा, वारिस को लेकर उठे सवाल
भोपाल।
विंध्य के शेर कहे जाने वाले पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी की प्रतिमा का अनावरण उनके शताब्दी वर्ष के अवसर पर भव्य आयोजन के साथ संपन्न हुआ। यह अवसर राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से ऐतिहासिक रहा, जिसने एक ओर जहां कांग्रेस को संवेदनात्मक संबल दिया, वहीं तिवारी जी के राजनीतिक उत्तराधिकार को लेकर चर्चाओं का नया द्वार भी खोल दिया।
कांग्रेस को मिला नैतिक बल
प्रतिमा अनावरण और शताब्दी समारोह ने कांग्रेस को विंध्य में एक बार फिर से भावनात्मक जुड़ाव का अवसर दिया। जो नेता वर्षों से श्रीनिवास तिवारी के घर की देहरी नहीं लांघते थे वे भी अब उन्हें पूज्य नेता के रूप में स्वीकार कर श्रद्धा प्रकट करते दिखे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आगामी चुनावों में तिवारी जी की विरासत कांग्रेस के लिए एक मजबूत सहारा बन सकती है।
सिद्धार्थ की गैरहाजीरी ने बढ़ाई हलचल
इस कार्यक्रम में जहां कई वरिष्ठ नेता विपक्षी पार्टी के प्रतिनिधि और सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद रहे वहीं तिवारी जी के पौत्र और वर्तमान विधायक सिद्धार्थ तिवारी ‘राज’ की अनुपस्थिति ने सवाल खड़े कर दिए।
उल्लेखनीय है कि सिद्धार्थ ने 2023 में कांग्रेस छोड़ भाजपा से चुनाव लड़ा और विजय प्राप्त की थी। तब से लेकर अब तक वे पारिवारिक विरासत और राजनीतिक स्थिति के बीच संतुलन की कोशिश करते नजर आते रहे हैं।
क्या अरुणा तिवारी बनेंगी राजनीतिक उत्तराधिकारी?

तिवारी जी की पुत्रवधु अरुणा तिवारी, जिन्होंने अंतिम समय तक उनकी सेवा की, अब कांग्रेस के कई नेताओं के लिए ‘वास्तविक वारिस’ के रूप में उभरती दिख रही हैं।

उनके संयम, सक्रियता और वरिष्ठ नेताओं से आत्मीय संबंधों ने उन्हें संगठन में स्वीकार्यता दिलाई है। पार्टी के भीतर यह चर्चा भी है कि आगामी चुनावों में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है।
क्या सिद्धार्थ ने चूकी भावनात्मक ज़िम्मेदारी?

कार्यक्रम में शामिल लोगों का कहना है कि तिवारी जी की मूर्ति के अनावरण जैसे भावनात्मक अवसर से दूर रहना सिद्धार्थ के लिए राजनीतिक नुकसान कर सकता है।
कई पुराने कांग्रेसियों ने इसे परिवार और पार्टी दोनों के प्रति उपेक्षा के रूप में देखा। दूसरी ओर, सिद्धार्थ समर्थक इसे राजनीतिक मजबूरी और दलगत अंतर का परिणाम बता रहे हैं।
विरोधियों ने भी दी श्रद्धांजलि
शताब्दी समारोह की एक और खास बात यह रही कि विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम जैसे पुराने विरोधी भी तिवारी जी को श्रद्धा देने पहुंचे। यह इस बात का प्रतीक बना कि श्रीनिवास तिवारी राजनीति के उस स्तर के नेता थे जो दलों की सीमाओं से परे जाकर सम्मानित किए जाते रहे हैं।
तिवारी जी की प्रतिमा का अनावरण केवल एक मूर्ति स्थापना नहीं, बल्कि विंध्य की राजनीति में भावनाओं और विरासत के पुनर्स्थापन का प्रतीक बन गया है। अब कांग्रेस के लिए यह भावनात्मक पूंजी को कार्य में बदलने की चुनौती है, और तिवारी परिवार के लिए उत्तराधिकार की गरिमा को निभाने का समय।


