रीवा, मप्र।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री श्री प्रह्लाद पटेल द्वारा प्रस्तुत “परिक्रमा – कृपा सार” केवल एक आध्यात्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि युवा पीढ़ी को संकल्प के पथ पर अग्रसर करने वाला मार्गदर्शक प्रकाशस्तंभ बनकर सामने आया है। यह पुस्तक, मां नर्मदा की परिक्रमा के अनुभवों का सार मात्र नहीं है, बल्कि आंतरिक चेतना की उस यात्रा की अभिव्यक्ति है, जो जीवन को स्थिरता, संयम और समझ से भर देती है।
श्री प्रह्लाद पटेल ने इस संग्रह में स्पष्ट किया है कि परिक्रमा केवल एक भौगोलिक यात्रा नहीं, बल्कि एक आत्मिक अनुशासन और जागृति की प्रक्रिया है। उनके शब्दों में, “पूर्णता, परिपूर्णता और संपूर्णता- यही परिक्रमा का अर्थ है, और यही उसकी सामर्थ्य भी।”
इस कृति के माध्यम से उन्होंने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि विकल्पों के युग में जब युवा भ्रमित होते हैं, तब उन्हें बाहरी आकर्षणों की ओर नहीं, बल्कि आत्मिक संकल्पों की ओर उन्मुख होना चाहिए। चाहे वह धर्म के प्रति निष्ठा हो, राजनीति में मूल्यों की स्थापना या जीवन की कठोर चुनौतियों से जूझने की क्षमता- संकल्प ही वह आधार है जो अंधकार में दीपक का कार्य करता है।
श्री पटेल के अनुसार, यह ज्ञान केवल पुस्तकीय नहीं होता – यह नर्मदा की परिक्रमा जैसे तपस्वी अनुभवों, मौन साधना, और सेवा में निष्ठा से उत्पन्न होता है। उन्होंने कहा कि “बुद्धि भ्रमित करती है, लेकिन ज्ञान तटस्थ करता है।” यह तटस्थता, मां नर्मदा की परिक्रमा जैसे अनुभवों से ही जागृत होती है।
रीवा के सामाजिक कार्यकर्ता एड. जनेंद्र मिश्र ने इस ग्रंथ को युवाओं के लिए “संयम और समझ का संबल” बताते हुए श्री प्रह्लाद पटेल का आभार व्यक्त किया। उनके अनुसार, “परिक्रमा कृपा सार केवल पढ़ने का ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन में उतरने का अनुभव है।”
यह ग्रंथ न केवल युवाओं को संकल्पशील जीवन की ओर प्रेरित करता है, बल्कि समाज को भी यह सोचने के लिए विवश करता है कि स्थिरता और समाधान बहस या शोर में नहीं, बल्कि मौन और साधना में निहित हैं।


