संजय गांधी अस्पताल में डीन राज का आतंक, ग्वालियर लॉबी हावी रीवा के मरीज और डॉक्टर बेहाल
रीवा।
विंध्य का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल संजय गांधी अस्पताल आज बीमारियों से ज्यादा व्यवस्थाओं की बीमारी से ग्रस्त है। यहां की प्रशासनिक जड़ें अब केवल एक नाम के इर्द गिर्द सिमट चुकी हैं डीन डॉ. सुनील अग्रवाल।
कहा जा रहा है कि डीन ने इस मेडिकल कॉलेज को दुधारू गाय समझ लिया है। अस्पताल से लेकर कॉलेज तक हर ठेका हर खरीद हर फैसले पर उन्हीं की टीम की पकड़ है।
कमीशनखोरी का नया तंत्र

अस्पताल परिसर और मेडिकल कॉलेज में करोड़ों रुपए के निर्माण कार्य जारी हैं। ठेकेदारों का खुला आरोप है कि बिना कमीशन के कोई फाइल आगे नहीं बढ़ती। पहले जो काम तुरंत होते थे अब पैसे का मुँह देखकर किए जाते हैं। मेंटेनेंस से लेकर छोटे मोटे उपकरणों तक पर कमीशन की मांग खुलकर हो रही है।
परिणाम यह कि अस्पताल में काम गुणवत्ता विहीन हो गया है और उपयोगी सामग्री समय पर न मिलने से सर्जरी जैसे अहम कार्य प्राइवेट अस्पतालों में शिफ्ट होने लगे हैं।
गायनी विभाग विवादों के घेरे में
मेडिकल कॉलेज का गायनी विभाग भी अब चर्चा में है। विभागाध्यक्ष डॉ. बीनू सिंह पर गंभीर आरोप लग रहे हैं। वे न केवल विंध्या नामक निजी अस्पताल की पार्टनर हैं बल्कि कॉलेज की जिम्मेदारी संभालते हुए अपने निजी अस्पताल में भी ऑपरेशन करती हैं।
कहा जा रहा है कि उन्होंने विभाग की कमान डॉ. गुंजन गोस्वामी को सौंप रखी है जो केवल विंध्या अस्पताल तक सीमित रहती हैं। विभाग के कई डॉक्टर या तो नौकरी छोड़ चुके हैं या लंबी छुट्टी पर चले गए हैं जो विभागीय माहौल की हकीकत खुद बयान करता है।
डीन बनाम अधीक्षक, टकराव में बर्बाद व्यवस्था
अस्पताल की बदहाली की एक बड़ी वजह डीन और अधीक्षक के बीच चल रही तनातनी भी है। सूत्रों के मुताबिक डीन अग्रवाल ने अधीक्षक को अपने निशाने पर ले रखा है। अधीक्षक स्थानीय हैं उन पर जनता और कर्मचारियों का दबाव रहता है जबकि डीन बाहरी हैं और उन्हें यहां की व्यवस्था से कोई लगाव नहीं है।
जानकार बताते हैं कि डीन की इच्छा ग्वालियर मेडिकल कॉलेज में पद पाने की थी लेकिन वहां जगह न मिलने पर उन्हें रीवा भेजा गया और अब वही रीवा उनके प्रयोगशाला में बदल गया है।
गुटबाजी से जर्जर हुआ अस्पताल
अस्पताल में अब कई गुट बन चुके हैं डीन समर्थक, कुछ डॉक्टरों के अपने अपने गुट। परिणाम यह कि मरीजों की देखभाल से ज्यादा गुटीय राजनीति में समय जा रहा है। जो संस्थान कभी विंध्य के मरीजों की उम्मीद था वह अब कमीशन और नियंत्रण की राजनीति में फँस गया है।
रीवा के लोग सवाल पूछ रहे हैं
रीवा के लोगों का सीधा आरोप है कि ग्वालियर के लोगों को संरक्षण दिया जा रहा है जबकि स्थानीय डॉक्टरों और कर्मचारियों को प्रताड़ित किया जा रहा है। अगर यही हाल कुछ और महीने रहा तो संजय गांधी अस्पताल की साख को बचाना मुश्किल होगा।
रीवा के नागरिक अब यही पूछ रहे हैं आखिर मरीजों के जीवन से खेलने का यह प्रशासनिक प्रयोग कब खत्म होगा।
चुपके से जाते है भोपाल डीन
डीन सुनील अग्रवाल ने भोपाल में अपनी पैठ बना ली है और आए दिन चुपके से भोपाल निकल जाते है। अभी कुछ दिन पहले विभाग के एक सचिव से हुई उनकी मुलाकात के बदला इनका रवैया चर्चा का विषय बन चुका है।
देखने में तो वे यहां के स्थापित जनप्रतिनिधियों को सपोर्ट करते हैं लेकिन वे लकड़ी में लगे घुन की तरह है जो अंदर से खोखला होने के बाद ही असलियत का पता चलता है।


