सरकारी स्कूल चलें हम, बस थोड़ी देर से
रीवा से मऊगंज, हनुमना, चाकघाट तक उड़ते ज्ञान के पंख और शिक्षक
रीवा।
अब ई-अटेंडेंस सिस्टम आ गया है तो कुछ शिक्षकों की नींद उड़ गई है। वजह साफ है अब मोबाइल बताएगा कि मास्टर जी स्कूल पहुंचे या नहीं। और अगर पहुंचे तो समय पर या बस की टाइमिंग देखकर स्कूल से फुर्र हुए।
ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कूलों में तैनात कई शिक्षक आजकल मोबाइल नेटवर्क, फोन हैंग, एंड्रॉइड न चलने जैसे नाटकीय बहानों की स्क्रिप्ट तैयार कर रहे हैं। वजह है ई-अटेंडेंस वह मोबाइल एप जो अब यह बताएगा कि शिक्षक वास्तव में स्कूल पहुंचे भी या नहीं। शिक्षक संगठन कहते हैं यह अपमान है, भरोसे पर शक है! और जनता कहती है भाई भरोसा तो तब बनता जब समय पर स्कूल पहुंचते।
अपडाउन एक्सप्रेस रीवा टू गांव स्कूल डेली सर्विस
रीवा शहर से मऊगंज, हनुमना, चाकघाट, सीधी, सिरमौर, बहरी, ब्योहारी तक सरकारी शिक्षक ऐसे अपडाउन कर रहे हैं जैसे कोई मल्टीनेशनल कंपनी का मैनेजर रोजाना मेट्रो पकड़ता हो। फर्क इतना है कि ये मेट्रो नहीं, लोकल बस होती है और हाथ में झोला के साथ सरकारी फाइलें होती हैं।
गांव में कागज पर किराए का घर
शिक्षक गांव में किराया के नाम पर 5 से 8 हजार ले रहे हैं, लेकिन रहते रीवा में हैं। बच्चे अगर 10:30 पर पढ़ने बैठते हैं तो शिक्षक शायद 11 बजे ठंडी सांसें लेते हुए पहुंचते हैं और कह देते हैं ट्रैफिक बहुत था बच्चों, इसलिए लेट हो गया।
सुबह स्कूल लेट पहुंचने की एक वजह तो समझ में आती है, लेकिन वापसी तो और भी मजेदार है। बस छूट न जाए इसलिए शिक्षक क्लास आधी ही छोड़कर चल देते हैं। अब आप सोचिए एक तरफ सरकार कहती है शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाओ और दूसरी तरफ मास्टर जी स्कूल को बस स्टॉप समझ रहे हैं।
मुखिया भी अपडाउन टोली में शामिल
कहते हैं जैसे राजा, वैसे प्रजा। कई स्कूलों में तो प्राचार्य/प्रधानाध्यापक ही रीवा से अपडाउन कर रहे हैं। ऐसे में वे अपने ही अधीनस्थों को क्या कहेंगे।
यह स्थिति इसलिए बनी है क्योंकि शिक्षा विभाग में जांच की परंपरा तो है, लेकिन उसे निभाने की जरूरत किसी को महसूस नहीं होती। कागज पर सब कुछ सही है।
अब ई-अटेंडेंस
अब जब शासन ने ई-अटेंडेंस की बात की है, जिससे शिक्षक की उपस्थिति मोबाइल लोकेशन के आधार पर दर्ज होगी, तो कुछ शिक्षक बेचैन हैं।
क्योंकि अब न झूठे हस्ताक्षर चलेंगे, न मनमानी। कुछ कह रहे फोन हैंग हो जाता है, कुछ बोले गांव में नेटवर्क नहीं रहता। तो भैया, जब हाउस रेंट ले रहे हो गांव के नाम पर, तो नेटवर्क के साथ-साथ गांव में खुद भी तो रहना पड़ेगा ना।
अगर ई-अटेंडेंस सही से लागू हुआ और प्रशासन ने इसकी मॉनिटरिंग की तो संभव है कि शिक्षक भी समय पर स्कूल आएं और बच्चों को ज्ञान देने के साथ समय भी दें।
तो मास्टर जी फोन चार्ज कर लीजिए, नेटवर्क चेक कर लीजिए और तैयार हो जाइए। अब ई-अटेंडेंस स्कूल समय का सच्चा साथी बनने जा रहा है।


