टोकन की मारामारी, अव्यवस्थित वितरण केंद्र, और बढ़ती अराजकता से हलकान अन्नदाता
रीवा से रिपोर्ट।
कृषि व्यवस्था को लेकर शासन-प्रशासन के तमाम दावे एक बार फिर ज़मीन पर चरमराते नज़र आ रहे हैं। रीवा जिले में खाद वितरण को लेकर हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि अन्नदाता किसान रातभर जागकर टोकन की लाइन में खड़े रहने को मजबूर हैं। खेतों में दिनभर की कड़ी मेहनत के बाद भी उन्हें खाद के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं।
खास बात यह है कि यह समस्या नई नहीं है, बल्कि हर साल यही दुश्वारियां दोहराई जाती हैं। बावजूद इसके, प्रशासन की ओर से न कोई स्थायी समाधान सामने आया और न ही कोई ठोस कार्रवाई दिखती है।
टोकन व्यवस्था बनी किसानों की सबसे बड़ी परेशानी।
किसानों की सबसे बड़ी शिकायत टोकन वितरण की धीमी प्रक्रिया को लेकर है। जिले में अधिकतर खाद वितरण केंद्रों पर प्रतिदिन महज 40 से 50 किसानों को ही टोकन मिल पा रहे हैं। इसके लिए किसानों को 6 से 8 घंटे तक लंबी लाइनों में खड़ा रहना पड़ता है। कई किसान रात दो बजे से ही केंद्रों के बाहर डेरा डाल देते हैं ताकि सुबह टोकन मिल सके।

टोकन मिल जाने के बाद भी उनकी परेशानी खत्म नहीं होती। पर्ची जारी करने की प्रक्रिया में भी घंटों की देरी होती है, जिसके चलते किसानों को बार-बार चक्कर काटने पड़ते हैं।
अव्यवस्थित वितरण केंद्र और अराजकता का माहौल।
चोरहटा जैसे खाद वितरण केंद्रों पर हालात और भी खराब हैं। वहां तक पहुंचना ही अपने आप में एक चुनौती बन चुका है। ट्रांसपोर्ट की कमी और लंबा सफर किसानों की जेब और समय दोनों पर भारी पड़ रहा है। वहीं, वितरण केंद्रों पर भीड़ का फायदा उठाकर कुछ अराजक तत्व घुस जाते हैं, जिससे असली किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है।
किसान बोले सिस्टम नहीं सुधरा, तो कैसे हो खेती?
मौके पर मौजूद कई किसानों ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि जब खाद ही समय पर नहीं मिलेगी तो बोवनी कैसे होगी? और बोवनी नहीं होगी तो पैदावार कैसे होगी? किसानों की इस नाराजगी के पीछे उनका गुस्सा वाजिब भी है, क्योंकि वर्तमान व्यवस्था उनकी मेहनत को मुनाफे में नहीं, बल्कि मशक्कत में बदल रही है।
कहां चूक रहा है सिस्टम समस्याएं और सुझाव
मुख्य समस्याएं
- टोकन वितरण धीमा और सीमित रोज़ाना केवल 40-50 टोकन, लंबी लाइनें।
- पर्ची जारी करने में देरी टोकन के बाद भी किसानों को कई घंटे इंतज़ार।
- अव्यवस्थित वितरण केंद्र यातायात की सुविधा नहीं, भीड़ और अफरातफरी।
- ऑनलाइन टोकन में दिक्कतें अंगूठा मिलान में गड़बड़ी, बार-बार फेल हो रही प्रक्रिया।
संभावित समाधान
- टोकन काउंटरों की संख्या बढ़ाई जाए, ताकि अधिक किसानों को सुविधा मिल सके।
- टोकन और पर्ची एक साथ दी जाएं, बार-बार लाइन में लगने की ज़रूरत न हो।
- ऑनलाइन प्रक्रिया में सुधार किया जाए, अंगूठा मिलान के बजाय मूल ऋण पुस्तिका से काम चले।
- वितरण केंद्रों की व्यवस्था सुधारी जाए ट्रांसपोर्ट की सुविधा बढ़ाई जाए, अराजक तत्वों पर कार्रवाई हो।
प्रशासन की चुप्पी पर उठ रहे सवाल
हैरानी की बात यह है कि इन समस्याओं को लेकर किसानों द्वारा कई बार आवाज़ उठाई गई है, फिर भी प्रशासन की ओर से कोई स्थायी समाधान नहीं निकल पाया है। ज़मीनी हकीकत यह है कि जिस किसान की बदौलत हम सबका पेट भरता है, वही किसान आज दो वक्त की खाद के लिए भीषण संघर्ष कर रहा है।
अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस गंभीर मुद्दे को कब और कितना गंभीरता से लेता है। क्योंकि यदि समय रहते सुधार नहीं हुआ, तो कृषि संकट और भी गहरा सकता है और उसकी मार सिर्फ किसानों पर नहीं, पूरे समाज पर पड़ेगी।


