पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी की मूर्ति पर मंथन, कांग्रेस ने मुद्दा उछाला, सत्ता ने माला डाल दी।
भोपाल।
स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी की प्रतिमा पर कांग्रेस ने सोचा था कि एक बड़ी सियासी रोटी सेंक लेंगे लेकिन सत्ता पक्ष ने तो ऐसा घी डाला कि तंदूर ही ठंडा पड़ गया। पीटीएस चौराहा की जमीन पर मूर्ति लगाने को लेकर कांग्रेस ने जबरदस्त तानाबाना बुना परंतु जैसे ही प्रशासन और पुलिस की अनुमति की बात आई मामला उनके हाथ से फिसल गया जैसे गरम जलेबी से सिरा फिसले।
नगर निगम रीवा ने जब हियरिंग काउंसिल से प्रस्ताव पास करवाया था तब पुलिस और प्रशासन से अनुमति लेना जैसे गृहकार्य करना भूल गए हों। अब मूर्ति तो लग जाएगी पर कांग्रेस के चेहरे पर वही भाव है जैसे शादी में दूल्हा ही नहीं आया हो।
अध्यक्ष ने साफ किया मामला

नगर निगम अध्यक्ष वेंकटेश पांडे ने साफ कर दिया कि जब पुलिस की जमीन पर पीएम आवास और बिजली का सब स्टेशन बन सकता है तो प्रतिमा क्यों नहीं? लेकिन सांसद जनार्दन मिश्रा ने तो जैसे कांग्रेस की उम्मीदों की लुटिया ही डुबो दी कहा कि क्या पुलिस की छाती पर मूर्ति लगाओगे ? अब भला बताइए ऐसी दिल से निकली बात तो मुद्दा बन सकती थी मगर अफसोस…कांग्रेस पकड़ ही नही पाई।
मूर्ति अनावरण के पीछे कांग्रेस का उददेश्य राजनीति भी थी।

इधर उनके पोते जो वर्तमान में त्थोंथर के भाजपा विधायक हैं स्वर्गीय श्री निवास तिवारी के नाम का लाभ तो लेना चाह रहे लेकिन इस विषय में मुंह बंद कर पता नही क्या बताना चाह रहे है।
पूर्व में भी प्रतिमा लगाने की बात फाइनल हुई थी
अध्यक्ष व्यंकटेश पांडेय की माने तो पूर्व में भाजपा महापौर भी प्रतिमा लगाने को राजी थे। अब कांग्रेस के पास इतिहास भी नहीं बचा बचाव में। ऊपर से चुरहट विधायक अजय सिंह राहुल ने भी सत्ता को कोसा लेकिन उनकी आवाज वैसी ही गूंजी जैसे वीराने में बांसुरी बजा दी हो।
कांग्रेस में नेतृत्व तो है पर अनुशासन वैसा ही है जैसे रेस में दौड़ता ऊंट दिशा तय नहीं, गति मंद और चाल अजीब।

अध्यक्ष इंजीनियर राजेंद्र शर्मा दूसरी बार कुर्सी पर हैं लेकिन निर्णय क्षमता इतनी धीमी है कि जैसे ब्रेक दबाने से पहले ही गाड़ी खुद रुक जाए।
अब जब 17 सितंबर को मूर्ति का अनावरण होना है और पुलिस सुरक्षा तैनात है तो कांग्रेसियों के पास केवल चाय पर चर्चा और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की थ्योरी ही बची है।
मूर्ति वोट का स्तंभ नही बन सकी
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि कांग्रेस मूर्ति को वोट का स्तंभ बनाना चाहती थी लेकिन मामला ऐसा निकल गया जैसे दही जमाने की सोची हो और दूध फट जाए।
श्रीनिवास तिवारी की प्रतिमा तो स्थापित अब होगी पर कांग्रेस के लिए यह राजनीति की वो थाली बन गई जिसमें परोसने से पहले ही खाना कोई और खा गया। अब 17 सितंबर को देखना है कि कांग्रेस में सन्नाटा टूटेगा या मूर्ति के साथ विपक्ष की रणनीति भी स्थायी हो जाएगी।


