रीवा।
महर्षि दधीचि की परंपरा को रीवा मेडिकल कॉलेज ने जीवंत कर दिखाया है। 281 लोगों ने मृत्यु से पहले अपने शरीर का दान करने का संकल्प लेकर समाज को एक नई दिशा दी है। इन दानदाताओं में विभिन्न जिलों के लोग शामिल हैं। पिछले 20-25 वर्षों में, 39 लोगों ने वास्तव में अपने शरीर दान किए हैं, जो चिकित्सा शिक्षा के लिए एक अमूल्य योगदान है।
मेडिकल छात्रों के लिए जीवनदान
रीवा मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग में, एक शव पर औसतन 10 छात्र चिकित्सा की पढ़ाई करते हैं। वर्तमान में, यहाँ 15 शव संरक्षित हैं, जिनसे लगभग 150 विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इस प्रक्रिया से छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान मिलता है, जो भविष्य में उन्हें बेहतर डॉक्टर बनाने में मदद करता है।
एक गुमनाम दानदाता ने बताया कि जीवन में समाज से बहुत कुछ पाने के बाद, वे चाहते हैं कि मृत्यु के बाद भी उनका शरीर समाज के काम आए। उन्होंने कहा कि कॉलेज में अभी भी शवों की कमी है, और समाज को शरीर दान के प्रति जागरूक करने की बहुत आवश्यकता है।
विशेषज्ञों की राय
एसजीएमएच रीवा के सहायक अधीक्षक डॉ. यत्नेश त्रिपाठी ने इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि शरीर दान सिर्फ मेडिकल छात्रों की पढ़ाई के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के लिए भी एक जीवनदायिनी पहल है।
रीवा मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग के इंचार्ज डॉ. भास्कर रेड्डी ने बताया कि 281 दानदाताओं ने अपने शरीर दान करने की सहमति दी है, जिससे भविष्य में चिकित्सा शिक्षा और भी मजबूत होगी। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे इस नेक कार्य के लिए आगे आएं।


