नेता जी, सीसे के घर में पत्थर मत फेंकिए।

अरे नेता जी, ये क्या नया फैशन निकाल लिया है आपने?
“सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली” — ये कहावत अब आपके पीछे लाइन लगाकर फोटो खिंचवाना चाहती है। आप भाजपा से निकाले गए तो क्या, संस्कार भी साथ में अलविदा कर आए?
याद है ना, मैहर का उपचुनाव जब आपके सपने में भी जीत का फूल नहीं खिल रहा था, तब इन्हीं राजेंद्र शुक्ल ने आपको विजय का माल पहनाया था।
2023 का चुनाव तो जैसे आपकी “आत्मनिर्भर हार योजना” का लाइव डेमो था। आपको लगता था पार्टी क्या चीज़ है, मैं तो स्वयंभू हूँ, अकेला ही चुनाव जिता दूँगा।
पर जनता ने बैलेट बॉक्स में आपकी “स्वयंभू” वाली हवा निकाल दी। अब हार के बाद की बौखलाहट आपको मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी तक खींच लाई है। और सुनिए, ये जो परिसीमन का नया डर दिखा रहे हैं ना अरे पहले परिसीमन हो तो जाने दीजिए।
मुकुंदपुर से रीवा की दूरी 15 किलोमीटर, सतना से 50, मैहर से 70….. इतनी दूरी में तो अब आपके ईगो का पूरा नाप लिया जा सकता है। जब 46 साल बाद राजेंद्र शुक्ल मुकुंदपुर में सफेद बाघ लाए, तब तो आप बाघ के साथ इतने खुश थे कि फोटो खिंचवाकर डीपी भी बदल ली थी। और अब अगर मुकुंदपुर रीवा में जुड़ जाए तो आपको पेट दर्द क्यों?
क्या बाघ रीवा जाकर आपके वोट खा जाएगा या आपकी रैलियों में दहाड़ मारेगा?
सच कहूँ तो यह “पेट-पीड़ा नीति” राजनीति के सिलेबस में नया चैप्टर बन सकती है।
पहले तो नेता मुद्दे खोजते थे, अब मुद्दों में पेट दर्द खोजते हैं, और आसमान की तरफ मुँह करके थूकना छोड़िए, नेता जी…..वरना छींटे आपके ही चश्मे पर पड़ेंगे।
आप कह रहे हैं कि राजेंद्र शुक्ल ने रीवा में क्या किया, आपको इतना नालेज तो होना चाहिए की उनने क्या किया, नही है तो रीवा आइए और पॉवर का चश्मा लगाकर देख जाइए…..जमीन खिसकते देख इतना मत बौखलाए, पहले अपना गिरेबान तो झाँक लीजिए।
जमीन खिसकने की आदत डाल लीजिए, क्योंकि अगर जनता ने भी झाँक लिया, तो फिर बाघ क्या, चूहा भी वोट डालने नहीं आएगा।


