कांग्रेस सरकार ने किया था प्रयास
भोपाल।
कमलनाथ सरकार ने अपने कार्यकाल में जनता से सीधे निकाय अध्यक्ष चुनाव कराने का नियम बनाया था लेकिन भाजपा सरकार आने के बाद वह नियम स्थगित कर दिया गया।अब एक बार फिर भाजपा सरकार ने इसे लागू करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई है जिससे जनता को अब प्रतिनिधियों को सीधा चुनने और उन्हें जवाबदेह बनाने का अवसर मिलेगा।
इस निर्णय पर कैबिनेट की मुहर लग चुकी है और मध्य प्रदेश नगर पालिका संशोधन अध्यादेश 2025 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद यह विधिवत रूप से राज्य में लागू हो गया है।
पहले क्या था अब क्या होगा।
- अध्यक्षों का चुनाव वार्ड पार्षद करते थेअब सीधे जनता वोट देकर अध्यक्ष चुनेगी।
- पार्षदों की आपसी जोड़.तोड़ खरीद.फरोख्त से अध्यक्ष बनते थे,जनता की सीधी भागीदारी से पारदर्शी चुनाव होगा।
- अध्यक्ष पार्षदों के दबाव में रहता था।अध्यक्ष को जनता का जनादेश प्राप्त होगा।
- कभी भी अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता था।
- अब 3 साल तक कोई अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा ।
मध्यप्रदेश में कुल कितने नगरीय निकाय हैं
राज्य में वर्तमान में कुल 413 नगरीय निकाय हैं जिनमें 17 नगर निगम, 99 नगर पालिका परिषद, 297 नगर परिषद ;नगर पंचायत।
वापसी की प्रक्रिया पर भी बड़ा बदलाव
नए अध्यादेश के अनुसार,
- किसी भी निकाय अध्यक्ष को पद ग्रहण करने के 3 साल तक नहीं हटाया जा सकता।
- 3 साल बाद अगर उसे हटाना है तो नगर निकाय क्षेत्र की आधे से अधिक जनता का गुप्त मतदान में समर्थन जरूरी होगा।
- पूरे कार्यकाल में केवल एक बार ही अध्यक्ष को हटाने की प्रक्रिया चलाई जा सकती है।
- इससे अध्यक्ष को स्थायित्व मिलेगा और वह जनहित के फैसले लेने में स्वतंत्र और प्रभावी होगा।
जनता को क्या फायदा होगा
- जनता के वोट से चुना हुआ अध्यक्ष जनता के प्रति जवाबदेह रहेगा न कि पार्षदों की गुटबाजी के।
- खरीद.फरोख्तए ब्लैकमेलिंग और जोड़.तोड़ की राजनीति पर ब्रेक लगेगा।
- विकास कार्यों में स्थिरता और तेज़ी आएगी।
- जनता को अपना नेता सीधे हटाने का अधिकार भी मिलेगा लेकिन बिना राजनीतिक ड्रामा के।
विशेषज्ञों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम स्थानीय प्रशासन में लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में मील का पत्थर है। अब पार्षदों की जोड़तोड़ वाली सत्ता संरचना की बजाय जनता.जनादेश आधारित नेतृत्व स्थापित होगा।
जनता का अध्यक्ष, जनता से चुनकर आए और जवाबदेही जनता के प्रति ही हो।
मध्यप्रदेश सरकार का यह निर्णय न सिर्फ एक विधिक सुधार है बल्कि यह स्थानीय स्वशासन को लोकतंत्र के असली अर्थ से जोड़ने वाला कदम है। अब जिम्मेदारी जनता की भी है कि वे वोट डालें, सोच.समझकर अध्यक्ष चुनें और उसे जिम्मेदार बनाए रखें।


