राज्य सरकार की नीति, पर्यावरणीय प्रतिबंध और अदालत के निर्देशों के बावजूद जारी है रेत का अवैध उत्खनन, गोपद से लीज तो सोन-बनास-महान से चोरी
सीधी।
सीधी जिले की चार प्रमुख नदियों गोपद, सोन, बनास और महान से रेत के अवैध उत्खनन का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। मध्यप्रदेश माइनिंग कार्पोरेशन द्वारा केवल गोपद नदी में लीज आधारित रेत उत्खनन की अनुमति दी गई है, जबकि सोन नदी सहित अन्य नदियों से दो दर्जन से अधिक घाटों से बिना किसी वैधानिक स्वीकृति के अवैध रूप से रेत निकाली जा रही है।
इस खेल में नीचे से लेकर ऊपर तक लाभ पहुंचने की लंबी कड़ी बताई जाती है। प्रशासनिक, राजनैतिक और पुलिस स्तर तक इस कारोबार की खुशबू पहुंचती है, तभी तो सरेआम हाईवा रेत से भरकर निकलते हैं और कोई रोकने वाला नहीं होता।
शहर में खुलेआम हो रही डंप रेत की बिक्री
गोपद नदी के 18 घाटों पर लीजधारी कंपनी को रेत निकालने का अधिकार है, लेकिन सोन, बनास और महान की नदियों से भंडारित रेत को गोपद का बताकर बेचा जा रहा है।
शहर के प्रमुख मार्गों और कालोनियों में 20 से 50 हाईवा रेत सरेआम भंडारित दिखती है। बिना टीपी (ट्रांजिट पास) के रेत की रातों-रात डंपिंग और निकासी हो रही है, लेकिन खनिज, वन और पुलिस विभाग मौन हैं।
सोन नदी के तीन घाटों से जारी है रात की निकासी
मानसून के दौरान भले ही नदी में बहाव तेज होता है, लेकिन सोन नदी के खड़बड़ा, गहिरा और कोरौली घाटों से रात में अवैध रेत निकालने का काम बदस्तूर जारी है।
बारिश खत्म होते ही करीब 30 घाट पूरी तरह चालू हो जाते हैं। बनास और महान नदियों की रेत भी पड़ोसी जिलों तक पहुंचाई जाती है। लेकिन इन घाटों की कोई अधिकृत पहचान नहीं है, न ही कोई निगरानी।
राज्यसभा में उठ चुका है सोन की रेत का मुद्दा
दो साल पूर्व राज्यसभा सांसद ने सोन नदी के रेत पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग संसद में की थी।
सोन घड़ियाल अभ्यारण्य और बगदरा व दुबरी जैसे संरक्षित क्षेत्रों के चलते यह प्रतिबंध लागू है। सांसद ने कहा था कि घड़ियालों की सीमित उपस्थिति को देखते हुए बाकी क्षेत्र को प्रतिबंध मुक्त किया जाए, लेकिन इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ।
इसी का फायदा उठाकर अवैध कारोबारी खुलेआम रेत निकाल रहे हैं।
रेत की एक गाड़ी की जब्ती पर 50-60 हजार का नुकसान होता है, लेकिन एक रात में 10 गाड़ियों से लाखों कमाने वाले माफिया को इससे फर्क नहीं पड़ता।
जब एक गाड़ी जब्त होती है, तो दूसरी गाड़ी उसी रात उसी घाट से रेत भरती है।
कार्रवाई का डर नहीं, प्रशासनिक संरक्षण की उम्मीद ज्यादा दिखती है।
यही कारण है कि अवैध कारोबारी रोज़ रेत निकालते हैं और अफसर-नेता चुप रहते हैं।


