विधि महाविद्यालय का राजनीतिक प्राचार्य, जहाँ पढ़ाई ठहरी और प्रभारी चल पड़े सत्ता की राह
रीवा।
कभी विधि के विद्यार्थी न्याय की भाषा सीखने कॉलेज जाया करते थे अब वहां राजनीति का पाठ पढ़ाया जा रहा है वो भी मुफ्त में। क्योंकि वहां के प्रभारी प्राचार्य डॉ योगेन्द्र तिवारी का पूरा समय अब शैक्षणिक नहीं राजनीतिक प्रबंधन में बीतता है। जबसे उन्होंने प्रभारी प्राचार्य की कुर्सी संभाली है ऐसा लगता है मानो उच्च शिक्षा विभाग ने उन्हें सर्वशक्तिमान सलाहकार बना दिया हो।
कक्षाएं सूनी

कॉलेज की कक्षाएँ सूनी हैं विद्यार्थी भटकते हैं पर डॉ तिवारी का ध्यान अब कक्षाओं पर नहीं राजनीति पर केंद्रित है। कहावत है कढ़ी मुराय न मुरेए फुलेरी को हाथ पसारें । कुछ वैसा ही हाल है इन जनाब का।
अपने कॉलेज की व्यवस्था संभल नहीं पा रही लेकिन वे दूसरे कालेज की राजनीति में क्रांति लाने की जिद लिए घूम रहे हैं।अब तो हाल ये है कि विधि महाविद्यालय में कौन सी क्लास कब चलती है इसका अंदाज़ा खुद प्रभारी प्राचार्य को भी नहीं। मगर अन्य कालेज में कौन.क्या कर रहा है इस पर उनकी नजर रहती है। जहाँ कोई विवाद हो वहाँ डॉ तिवारी ज़रूर मिलेंगे। या तो शिकायतकर्ता बनकर या फिर विशेषज्ञ विश्लेषक की भूमिका में। उच्च शिक्षा के गलियारों में अब इन्हें कॉपी ठेकेदार से कॉपी कमेंटेटर तक के नामों से जाना जाने लगा है। कभी उत्तर पुस्तिकाओं के ठेके लेकर आर्थिक संपन्नता अर्जित की थी पर अब जब वह रास्ता संकरा पड़ गया तो मीडिया का सहारा लेकर भड़ास को खबरों का रूप देने लगे।
सत्ता की लगी गंध
कहते हैं जब व्यक्ति को सत्ता की गंध लग जाती है तो वह खुद को पद नहीं पद का उत्तराधिकारी मान बैठता है। शायद यही स्थिति आज डॉ तिवारी की है। सूत्र बताते हैं कि इन पर पहले भी कई शिकायतें राज्यपाल और उच्च शिक्षा मंत्री तक पहुँच चुकी हैं। फिर भी इनका राजनीतिक आत्मविश्वास अडिग है । मानो शिक्षा जगत की कमान इन्हीं के हाथों में सौंप दी गई हो।

कॉलेज के शिक्षक कहते हैं कि तिवारी जी ने शिक्षण को प्रशासनिक मिशन में बदल दिया है जहाँ विद्यार्थी अब सिर्फ साक्षी हैं और राजनीति विषय बन चुकी है। कभी कहते थे शिक्षक समाज का दीपक होता है। पर यहाँ दीपक जलाने वाला ही राजनीति की आँधी में लैंपपोस्ट बन गया है। डॉ योगेन्द्र तिवारी अब पढ़ाने से ज़्यादा प्रदर्शन करने में विश्वास रखते हैं । कभी कालेजो की गलती पकड़ना कभी अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा की नीतियों पर सवाल उठाना जैसे शिक्षा नहीं सत्ता समीकरण ही असली पाठ्यक्रम हो। रीवा का विधि महाविद्यालय अब व्यंग्य का विषय बन गया है।जहाँ विधि तो नाम में है पर अविधि का राज चल रहा है।
प्रभारी प्राचार्य खुद को शिक्षा सुधारक बताते हैं मगर उनके कॉलेज की हालत देखकर यही कहना पड़ता है कि तिवारी जी पहले अपना घर संभालिए अभी एडी बनने का सपना मत सजोइए।
मान लिया गया कि आप कांग्रेस नेता के भी दरबारी है और संघ को भी अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उपयोग कर रहे है पर अभी आपके लिए बड़ी कुर्सियां बहुत दूर हे। जिस कुर्सी में बैठे है वही अब खतरे में है। कहा जाता है कि जिनके घर सीसे के बने होते है वो दूसरे के घर पत्थर नहीं फेंकते लेकिन याद रखें तिवारी साहब आप यही कर रहे है। आपका सर्वनाक कृत्य शिक्षा जगत के लिए कलंक है। आपको अंदर से जरूर लगता होगा कि आप बेहतर है लेकिन दुनिया गोल है साहब। आपकी जांच की फाइल भी बन रही है।
विधि कॉलेज के चारों तरफ गंदगी कॉलेज का दुर्भाग्य है कि प्रभारी प्राचार्य केवल राजनीति कर रहे हैं पठान-पाटन व्यवस्था तो थपकी है कॉलेज के चारों तरफ गंदगी कलम है परिसर को देखने को ऐसा लगता है कि कोई यह घुड़सर बन गया है उन्हें यह सब कुछ नहीं दिखता है।


