जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों ने इसे बना दिया एक फोटो अपने नाम
अब दृश्य देखिए जो मैने पिछले दिनों रीवा से भोपाल जाते समय जबलपुर और भोपाल के बीच देखा। एक गड्ढा, एक पौधा, चार गमले, बीस नेता, दस माला, और सौ मोबाइल कैमरे।हर हाथ में एक संकल्प, हर जेब में एक मोबाइल, और हर चेहरे पर मातृत्व का झूठा गर्व! हमने भी मां के नाम पेड़ लगाया है!
एक ही पौधा,,,और उसमें अलग.अलग मां के बीस बेटे! अब इस दृश्य को देखकर ऊपर बैठी असली मां, धरती माता भी शर्मा जाए कि हे भगवान! मेरे एक बेटे ने तो मुझे अकेले छोड़ दिया था, अब एक ही पेड़ को बीस बेटों ने गोद ले लिया है, मजेदार बात ये कि इस राजनीतिक बागवानी में,पौधा रोपने वाला आदमी कौन था किसी को नहीं पता।,पानी देने कौन आएगा, किसी को नहीं पता। पर फोटो में सबके चेहरे चमक रहे हैं ऐसे जैसे पौधा नहीं वोट का बीज रोपा गया हो।
अब सवाल ये है,क्या ये पेड़ लगाओ अभियान है या,पेड़ पकड़ो और कैमरा देखो प्रतियोगिता, क्या ये मां के नाम पौधा है या पार्टी के नाम पाखंड,और हां, अगली बारिश में जब वो पौधा बहकर नाले में पहुंचेगा तोे उसे बचाने कोई नहीं होगा, क्योंकि उस वक्त न कैमरा होगा न किसी की मुस्कान। ये कोई पर्यावरण प्रेम नहीं ये है हरियाली में भी फोटो खिंचवाने की राजनीति।
याद रखो
पेड़ वो नहीं जो गड्ढे में गाड़ दिया,पेड़ वो है जो सालों तक खड़ा रहे और तुम्हारे झूठ को देख- देख कर भी ऑक्सीजन देता रहे। लेकिन तुमने तो पेड़ को भी वोटबैंक बना डाला। पत्तों पर भी प्रचार लिख डाला। और हर टहनी को झूठ की माला पहना दी।
हे प्रभू!
हरियाली बचाओ का अर्थ हाथ में हरा रंग लेकर झूठ फैलाना नहीं होता।
अगर एक पेड़ को बीस बार रोपा जा रहा है, तो अगली बार एक वोट पर सौ नेता क्यों न बैठा दिए जाएं, देश के लोग अब पौधे नहीं,ईमानदारी का अंकुर चाहते हैं।
जो नेताओं की जेब में नहीं किसी किसान के खेत में उगता है।
अंत में बस इतना ही कहेंगे मां के नाम पर मत खेलो,न ही पेड़ के नाम पर फोटो खिंचवाओ।
अगर सच में कुछ करना है तो एक पेड़ लगाकर उसे बड़ा होते देखो, जैसे एक मां अपने बच्चे को बड़ा होते देखती है, बिना फोटो, बिना प्रचार, सिर्फ सच्चे प्यार से।
वरना लोग कहेंगे
ये हरियाली नहीं खुद का हरापन है।


