रीवा।
राजनीति में विचारधारा नहीं,वातावरण’ चलता है और चंचल द्विवेदी इसका चलता-फिरता उदाहरण बनते जा रहे हैं
कभी कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ता, फिर बीजेपी के हमसफ़र, और अब फिर कांग्रेस के इर्द-गिर्द मंडराते हुए देखे गए। मौका था स्व. श्रीनिवास तिवारी के शताब्दी समारोह का, जहां मंच तो कांग्रेस का था और मंच के आसपास चंचल जी का मन भी चंचल होता दिखा।
एक चुनाव, दो वफादारियाँ
2023 के चुनाव में कांग्रेस ने जब सिद्धार्थ तिवारी ‘राज’ को टिकट नहीं दिया, तो चंचल जी भी संग-साथ बीजेपी के दरबार में चले गए।
सिद्धार्थ जी अब त्यौंथर से भाजपा विधायक हैं, लेकिन चंचल जी का दिल शायद अब भी हाथ के पंजे की पकड़ में है।
किधर को है दिशा?
समारोह में चंचल जी कांग्रेस नेताओं के चारों ओर घूमते नज़र आए , नज़रों में अपनापन, चाल में संकोच, लेकिन मन में राजनीतिक हलचल साफ़ दिख रही थी।
कहते हैं, मौसम की तरह राजनीति का मूड भी बदलता है और चंचल जी तो जैसे इस मौसम के सबसे संवेदनशील सेंसर हैं।
राजनीति का रडार: जहां भी सिग्नल मिले… वहीं पकड़ लो!
राजनीति में ऐसे नेताओं को ग्लूकोज ड्रिप वाले कार्यकर्ता कहा जाता है जहां सत्ता की नस खुली दिखे, वहीं पाइप लगाकर ऊर्जा ले ली जाए।
बीजेपी में हैं, पर कांग्रेस की बैठकों में नजर आते हैं।
कांग्रेस के हैं, पर बीजेपी के विधायक का जयकारा भी नहीं छोड़ते।
जनता का सवाल:
भैया, अब आप हैं किस ओर?
जनता भी कन्फ्यूज है जैसे सोशल मीडिया पर बार-बार पासवर्ड बदलो, और अंत में भूल जाओ कि लॉगइन कहां किया।
चंचल का मन अब वाकई चंचल हो चला है।
लगता है, उन्हें खुद नहीं पता कि उनका अगला राजनीतिक स्टेटस क्या होगा —
Committed, It’s complicated, या फिर “Back to Ex”!


