रीवा।
कभी गांव के लोगों के लिए एक उम्मीद था “शांति धाम” एक ऐसा स्थान जहां अंतिम संस्कार गरिमा और सम्मान के साथ हो सके, वह आज अपने अस्तित्व के लिए तरस रहा है। रीवा सांसद जनार्दन मिश्र के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत बने ये शांति धाम अब देखरेख के अभाव में टूट चुके हैं, बिखर चुके हैं और कुछ तो पूरी तरह उजड़ चुके हैं।
एक अच्छी सोच की शुरुआत
वर्ष 2015-16 में जनप्रतिनिधित्व की भावना के साथ जनार्दन मिश्र ने यह पहल शुरू की थी कि हर ग्राम पंचायत में शेड, चबूतरा, बाउंड्री, फर्श और पेवर ब्लॉक से युक्त एक सुव्यवस्थित शांति धाम बने। सांसद निधि से प्रति पंचायत 10 लाख रुपए दिए गए। कुछ पंचायतों ने मनरेगा से भी राशि जोड़कर इन धामों को मॉडल स्वरूप दिया।
लेकिन अब सिर्फ ढांचे बचे हैं।
10 वर्षों बाद स्थिति ये है कि उन धामों में अब न पौधे हैं, न स्वच्छता, न ही व्यवस्था। पेवर ब्लॉक उखड़ गए हैं, बाउंड्री टूटी है और कई जगहों पर ये स्थल मवेशियों का बाड़ा या कबाड़ रखने की जगह बन गए हैं।
रीवा ब्लॉक के कोठी गांव की सावित्री देवी कहती हैं, पहले लोग यहां अंतिम संस्कार करने आते थे, अब कोई झांकता भी नहीं। गंदगी और झाड़ियां भर गई हैं।
रायपुर कर्चुलियान के राजीव कोल बताते हैं, शुरुआत में बहुत अच्छा बना था, गांव वाले गर्व करते थे लेकिन अब देखभाल न होने से सब बर्बाद हो गया।
विकास की कीमत लापरवाही? ग्राम विकास विशेषज्ञ डॉ. अरुण सिंह कहते हैं ग्रामीण प्रोजेक्ट्स का भविष्य तभी सुरक्षित है जब उनके लिए स्थायी रखरखाव प्रणाली बनाई जाए। सिर्फ निर्माण कर देना काफी नहीं है।
- जिम्मेदारी तय होनी चाहिए अब सवाल यह है कि क्या शांति धामों का निर्माण कर देना ही पर्याप्त था?
- रखरखाव की जिम्मेदारी किसकी थी पंचायत, जनपद या जिला प्रशासन की?
- क्या किसी ने इनके सालाना रखरखाव का बजट निर्धारित किया?
- उजड़ी संरचनाओं की मरम्मत कब और कैसे होगी?
अब क्या किया जाना चाहिए?
- हर ग्राम पंचायत में एक मेंटेनेंस नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाए।
- सालाना सफाई, मरम्मत और देखरेख के लिए बजट तय हो।
- स्थायी सफाईकर्मी या संविदा कर्मचारी की नियुक्ति हो।
- उजड़ चुके शांति धामों का पुनर्निर्माण या मरम्मत कर उन्हें फिर से उपयोगी बनाया जाए।
सांसद जनार्दन मिश्र ने कहा,
मैंने यह योजना गरीबों को सम्मान देने के लिए शुरू की थी। जिला पंचायत को एक साथ 40 शांति धामों के लिए राशि दी गई। कई जगहों पर अच्छे निर्माण हुए भी हैं, लेकिन अब शिकायतें मिल रही हैं। मैं कलेक्टर को पत्र लिखकर सभी शांति धामों की मरम्मत और रखरखाव सुनिश्चित कराने की मांग करूंगा।

एक समाज की संवेदनशीलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह अपने मृतकों के साथ कैसा व्यवहार करता है। शांति धाम सिर्फ एक निर्माण नहीं, बल्कि अंतिम सम्मान का प्रतीक हैं। इन्हें बचाना सिर्फ एक योजना को बचाना नहीं, बल्कि संवेदना को ज़िंदा रखना है।


