काठमांडू।
नेपाल में कुछ दिनों पहले तक सब कुछ सामान्य लग रहा था। लेकिन 8 और 9 सितंबर को जैसे ही युवाओं की आवाज़ सड़कों पर गूंजने लगी, सत्ता की दीवारें हिलने लगीं। ‘जेनरेशन Z’ के इन उभरते कदमों ने केपी शर्मा ओली की सरकार को घर बैठा दिया। और अब, उसी आंदोलन ने एक नया इतिहास लिखने की ओर कदम बढ़ा दिया है।
नेपाल की पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को देश की अंतरिम प्रधानमंत्री के तौर पर सबसे ज़्यादा समर्थन मिला है। अगर सारी औपचारिकताएं पूरी हो जाती हैं, तो वे देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनेंगी। यह किसी एक महिला की जीत नहीं होगी, बल्कि नेपाल के युवाओं, न्यायप्रियता और सामाजिक बदलाव की एक बड़ी मिसाल होगी।
कौन हैं सुशीला कार्की?
72 साल की सुशीला कार्की को नेपाल एक निडर और ईमानदार जज के तौर पर जानता है। वे नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस रह चुकी हैं और उनका नाम हमेशा से पारदर्शिता और कड़ाई से फैसले देने वालों में शुमार रहा है।
दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने अपनी पढ़ाई भारत में की है। वाराणसी के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से उन्होंने पॉलिटिकल साइंस में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। करियर की शुरुआत टीचर के रूप में की थी, लेकिन समाज में बदलाव का जुनून उन्हें कानून के क्षेत्र तक ले आया।
कैसे हुआ ये चुनाव?
10 सितंबर को जेन Z आंदोलन से जुड़े लोगों ने एक ऑनलाइन मीटिंग बुलाई, जिसमें 5,000 से ज्यादा युवाओं ने भाग लिया। चर्चा इस बात पर हो रही थी कि अब देश को एक अंतरिम नेतृत्व कौन दे।
पहला नाम आया काठमांडू के लोकप्रिय मेयर बालेन शाह का, लेकिन उन्होंने कॉल और मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया। फिर चर्चा बढ़ी और सामने आए कई नाम — कुलमान घिसिंग, सागर ढकाल, हरका सम्पांग और यहां तक कि यूट्यूबर ‘रैंडम नेपाली’ भी। लेकिन सबसे ज़्यादा समर्थन मिला — सुशीला कार्की को।
उन्होंने शर्त रखी थी कि अगर 1,000 लोग लिखित समर्थन दें तो ही वे प्रधानमंत्री पद स्वीकारेंगी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्हें अब तक 2,500 से ज्यादा समर्थन पत्र मिल चुके हैं।
अब आगे क्या?
हालांकि आंदोलनकारियों ने कार्की के नाम पर सहमति बना ली है, लेकिन ये फैसला अब सेना और राष्ट्रपति की मंज़ूरी से गुज़रेगा। उन्हें पहले सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल से मिलना होगा, और फिर राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल की अनुमति जरूरी होगी। तभी वे शपथ ले सकेंगी।
बदलते नेपाल की तस्वीर
नेपाल में यह पहली बार है जब सत्ता परिवर्तन की प्रक्रिया में सिर्फ राजनीतिक दल नहीं, बल्कि आम युवा, छात्र, यूट्यूबर, इंजीनियर और शिक्षकों की भी भूमिका अहम रही है। यह दिखाता है कि अब देश की युवा पीढ़ी सिर्फ वोटर नहीं, बल्कि निर्णयकर्ता भी बन चुकी है।
अगर सुशीला कार्की प्रधानमंत्री बनती हैं, तो यह कदम सिर्फ नेपाल के लिए नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में महिलाओं और न्यायप्रिय नेतृत्व की नई उम्मीद जगा सकता है।


