मन को मोह ले वही मोहन
रीवा की दहाड़ती विरासत बहुत कम शहर ऐसे होते हैं जिनका नाम सुनते ही इतिहास, शान और जंगल की दहाड़ एक साथ गूंज उठे, और रीवा ऐसा ही एक शहर है। यह सिर्फ किलों का शहर नहीं, बल्कि कहानियों का शहर है। यहाँ के जंगल में सिर्फ जानवर नहीं, बल्कि जंगल की आत्मा बसती है, और यहाँ के बाघ सिर्फ गौरव हैं।
जब जंगल में मिला एक चमकता इतिहास

वर्ष 1951 की बात है, रीवा के महाराज मार्तंड सिंह जूदेव सीधी के घने जंगलों (आज का संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान) में शिकार पर निकले थे। तभी उन्हें एक सफेद बाघ का शावक मिला। उसकी चमकती सफेदी, नीली आँखें और ऐसा आकर्षण था कि महाराज का मन मोह लिया। उन्होंने उसका नाम ‘मोहन’ रखा, और यहीं से सफेद बाघों की दुनिया का सफर शुरू हुआ।
मोहन सिर्फ एक बाघ नहीं था, वह रीवा की रूह बन गया। वह फुटबॉल खेलता, मस्ती करता और जब खेलने का मन नहीं होता तो पंजे से गेंद फाड़ देता। महाराज मार्तंड सिंह जूदेव का मोहन से गहरा लगाव था। कहते हैं जब मोहन को गोविंदगढ़ किले में लाया गया, तो महाराज ने यह कहकर किला छोड़ दिया कि “एक किले में दो शेर नहीं रह सकते, यह किला अब मोहन का है।” इसके बाद महाराज ने कभी गोविंदगढ़ किले में रात नहीं बिताई और रीवा किले में रहने लगे।
मोहन की विरासत ने दुनिया को मोहित किया
मोहन की मौत ने महाराज को गहरा दुख पहुँचाया। इस दुःख में उन्होंने किले में बचे अंतिम सफेद बाघ ‘विराट’ को भी भारतीय नौसेना को दे दिया, और रीवा में सफेद बाघों की दहाड़ सन्नाटे में बदल गई।
लेकिन मोहन ने अपनी संतानों के माध्यम से सफेद बाघों की ऐसी वंश परंपरा बनाई, जो भारत से लेकर अमेरिका, इंग्लैंड, जापान और दक्षिण अफ्रीका तक फैल गई। इस तरह रीवा, जो कभी सिर्फ एक रियासत थी, अब विश्वभर में सफेद बाघों की धरती कहलाने लगी।
मुकुंदपुर में मोहन की विरासत की वापसी

साल 2016 में मोहन की कहानी फिर से जीवित हो उठी, जब मुकुंदपुर में व्हाइट टाइगर सफारी एंड ज़ू की स्थापना हुई।
इसके पीछे वर्तमान डिप्टी सीएम की प्रेरणा थी, जो उस समय वन मंत्री थे। उनकी पहल से सिर्फ बाघ ही नहीं लौटे, बल्कि लौटी मोहन की स्मृति, रीवा की पहचान और हर बच्चे की आँखों में एक नई चमक।

आज मुकुंदपुर सफारी सिर्फ सफेद बाघों का घर नहीं है, यहाँ शेर, तेंदुए, भालू और अन्य वन्यजीव भी हैं। यह स्थान पर्यटकों को सिर्फ रोमांच ही नहीं देता, बल्कि वन्यजीवन के प्रति संवेदनशीलता और जागरूकता भी जगाता है।
एक पुकार,
मैं मोहन की विरासत हूँ, मुझे निहारो नहीं, संभालो

आज जब भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 3167 हो गई है और मध्यप्रदेश को ‘टाइगर स्टेट’ का दर्जा मिला है, तो इसमें रीवा और मुकुंदपुर का नाम गर्व से लिया जाता है।
मुकुंदपुर आज सिर्फ एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण संरक्षण केंद्र भी है। यहाँ बच्चे, छात्र, और शोधकर्ता प्रकृति और पारिस्थितिकी तंत्र के महत्व को समझते हैं। हर बच्चा जब मोहन की कहानी सुनता है, तो वह सिर्फ एक जानवर से नहीं, बल्कि प्रकृति की आत्मा से जुड़ जाता है।
रीवा, जहाँ इतिहास दहाड़ता है और भविष्य फिर से जंगल में लौटता है। जब मुकुंदपुर की वादियों में बाघ की आवाज़ गूंजती है, तो वह सिर्फ जंगल की आवाज़ नहीं होती, बल्कि मोहन की आत्मा की पुकार होती है।
मैं मोहन की विरासत हूँ, मुझे निहारो नहीं, मुझे संभालो


