दिल्ली।
नेपाल, भारत का पारंपरिक पड़ोसी, सांस्कृतिक साझेदार और रणनीतिक सहयोगी, एक बार फिर गंभीर राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। 8 सितंबर से शुरू हुई सियासी हलचल ने वहाँ के प्रधानमंत्री को न केवल इस्तीफे के लिए मजबूर कर दिया, बल्कि वे देश छोड़कर भागने तक को विवश हो गए। राजधानी काठमांडू में जनता का आक्रोश इस कदर फूटा कि सिंहासन प्रतीकात्मक रूप से जला दिया गया। यह केवल एक सरकार का पतन नहीं था — यह जनभावनाओं के विस्फोट और तंत्र की विफलता का संकेत था।
नेपाल में यह राजनीतिक तूफ़ान ऐसे समय आया है जब देश एक नई “अंतिम सरकार” के गठन की ओर बढ़ रहा है। लेकिन इस अस्थिरता की गूंज भारत तक सुनाई दे रही है — और यही भारत के लिए चिंता का विषय है।
भारत-नेपाल: रोटी-बेटी के रिश्ते की मजबूती को खतरा
भारत और नेपाल के रिश्ते सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और पारिवारिक हैं। दोनों देशों के बीच “रोटी-बेटी” का अटूट संबंध है। सीमाएं खुली हैं, परिवार एक-दूसरे में बसे हैं, और आर्थिक-सामाजिक जुड़ाव गहरा है। ऐसे में नेपाल में फैली अस्थिरता, भारत की सीमाओं तक असर डाल सकती है — और भारत ऐसा किसी भी सूरत में नहीं चाहेगा।
दिल्ली से काठमांडू तक नज़रें तनी हैं
नई दिल्ली में रणनीतिक हलकों में नेपाल की स्थिति पर बारीकी से नज़र रखी जा रही है। हाल ही में मालदीव में जो कठिन राजनयिक संघर्ष भारत ने झेला और अंततः अपने हित में माहौल बनाया, वह एक स्पष्ट संकेत है कि अब भारत को दक्षिण एशिया में प्री-एक्टिव डिप्लोमेसी की आवश्यकता है — सिर्फ प्रतिक्रिया देने से काम नहीं चलेगा।
नेपाल में वर्तमान संकट को केवल आंतरिक मामला मानना, एक बड़ी भूल हो सकती है। भारत को न केवल सरकार-स्तर पर, बल्कि लोगों के स्तर पर भी संवाद और सहयोग बढ़ाना होगा।
भ्रष्टाचार, संघर्ष और मौतें: लोकतंत्र की चेतावनी
नेपाल में जो कुछ हुआ, वह किसी तख्तापलट से कम नहीं। भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनता का गुस्सा सड़कों पर आया, और देखते ही देखते, यह आंदोलन खूनी संघर्ष में बदल गया। मौतें हुईं, भय और भ्रम का वातावरण बना, और इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव हिल गई।
भारत को चाहिए कि वह नेपाल में लोकतंत्र की स्थिरता के लिए सक्रिय रूप से सहयोग करे — न केवल कूटनीतिक रूप से, बल्कि मानवीय और सामाजिक स्तर पर भी। क्योंकि नेपाल की स्थिरता, भारत की सुरक्षा और सांस्कृतिक अखंडता से गहराई से जुड़ी है।
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अंत में…
नेपाल के हालात अब सिर्फ नेपाल के नहीं हैं। एक अस्थिर नेपाल, भारत की उत्तरी सीमाओं के लिए रणनीतिक चुनौती बन सकता है। भारत को अब प्रतीक्षा करने की नहीं, प्री-एक्टिव नीति अपनाने की ज़रूरत है — ताकि दक्षिण एशिया में शांति, स्थिरता और सहयोग का वातावरण बना रह सके।


