रीवा से सटे दर्जनों गांव जहरीली हवा में जीने को मजबूर, प्रशासन बना मूकदर्शक
रीवा, मध्य प्रदेश | विशेष रिपोर्ट
रीवा जिले से सटे बेला क्षेत्र में जीवन अब सामान्य नहीं रह गया। यहां की आबोहवा में सिर्फ सीमेंट का धुआं, ब्लास्टिंग का कंपन और जनता की चीख-पुकार घुल चुकी है। वजह है अल्ट्राटेक सीमेंट फैक्ट्री, जिसने पहले से ही प्रदूषित चल रहे जेपी सीमेंट प्लांट को खरीद कर, अब इस इलाके को पूरी तरह से जीवनदायी नहीं, मौतदायी जोन में बदल दिया है।
सीमेंट प्लांट का जहरीला साम्राज्य
पूर्व में जेपी ग्रुप द्वारा 1980 के दशक में रीवा में सीमेंट प्लांट की नींव रखी गई थी। बेला, जेपी नगर और सतना में फैले इन प्लांट्स से लोगों को कभी उम्मीद थी कि क्षेत्र में विकास आएगा, लेकिन हुआ इसके ठीक उल्टा।
जेपी के पतन के बाद अल्ट्राटेक ने बेला प्लांट का अधिग्रहण किया और तब से यहां की धरती, हवा और पानी,तीनों जहर में बदल चुके हैं।
बीमार होता समाज :
दमा, सांस की तकलीफ, त्वचा रोग आम बात है यहां तो स्थानीय निवासी अब सामान्य जीवन नहीं जी पा रहे। लगातार उड़ते सीमेंट के धूल-कणों से बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं में दमा, सांस की तकलीफ, और त्वचा रोग आम होते जा रहे हैं। गांवों में अस्पताल नहीं, दवाइयां नहीं, और अब तो पानी भी नहीं।
पानी नहीं, क्योंकि जमीन के नीचे कुछ बचा ही नहीं!
अल्ट्राटेक की लगातार और अंधाधुंध ब्लास्टिंग के कारण इलाके की भूजल स्तर इतनी नीचे जा चुकी है कि लोगों के बोरवेल सूख चुके हैं।

गर्मी में लोग बूंद-बूंद पानी को तरसते हैं, और कंपनी इस बारे में कोई सुनवाई तक नहीं करती।
कंपनी ने हमारी जमीन ले ली, अब पानी भी छीन लिया। अब हमारा क्या बचा हैं? – पीड़ित ग्रामीण रामसखा नापित
जनता के हक पर हमला, रोजगार भी नहीं!
जहां एक ओर कंपनी अरबों का मुनाफा कमा रही है, वहीं दूसरी ओर स्थानीय युवाओं को कोई रोजगार नहीं दिया गया। उल्टा, बाहर से मजदूर लाकर गांव के बेरोजगार युवाओं को दरकिनार किया गया।
ब्लास्टिंग से घरों में दरारें, खेतों में पत्थर
सीमेंट बनाने के लिए जिस तरह से गैरकानूनी तरीके से ब्लास्टिंग की जा रही है, उससे न सिर्फ जमीन हिलती है, बल्कि लोगों के मकानों में दरारें, खेतों में पत्थर, और रातों की नींद गायब हो चुकी है।

कब तक चुप रहेगा प्रशासन?
ग्रामीणों द्वारा कई बार प्रदर्शन, ज्ञापन, और मांग की गई कि इस बे- लगाम कंपनी पर लगाम लगे, लेकिन प्रशासनिक संरक्षण के कारण हर बार आवाज दबा दी जाती है।
ग्रामीणों ने कहा यहां विकास नहीं, विनाश हो रहा है और सरकारें तमाशा देख रही हैं।
क्या बेला दूसरा भोपाल बनने जा रहा है?
यदि हालात ऐसे ही रहे, तो आने वाले वर्षों में बेला क्षेत्र एक ‘स्लो पॉयजन जोन’ बन जाएगा, जहां हवा, पानी, खेत, सब कुछ खत्म हो जाएगा। यह सवाल उठता है — क्या हम एक और औद्योगिक त्रासदी का इंतजार कर रहे हैं?


