स्वर्ग रथ सेवा या शोक की अग्निपरीक्षा?
नगर निगम की संवेदनहीनता पर जनता का सवाल।
रीवा।
नगर निगम द्वारा चलाई जा रही “स्वर्ग रथ” सेवा अब जनता के लिए सुविधा नहीं, मुसीबत का कारण बनती जा रही है। जनता ने आयुक्त, महापौर, निगम अध्यक्ष एवं नेता प्रतिपक्ष से जनता का सीधा और कड़ा सवाल है जब इस सेवा को समय पर और संतोषजनक तरीके से नहीं चलाया जा सकता, तो इसे बंद क्यों नहीं कर दिया जाता?
एक घंटे में सिर्फ 4 किमी
स्वर्ग रथ को स्वागत भवन से संजय गांधी अस्पताल तक पहुंचने में एक घंटे से अधिक लग रहे हैं। वजह? ड्राइवर अनुपलब्ध,डीजल का अभाव,प्रशासनिक लापरवाही।
नतीजा?
मृतकों के परिजन गहरी पीड़ा में, अपने अपनों के अंतिम संस्कार के लिए प्राइवेट वाहनों की शरण ले रहे हैं वो भी भारी किराये पर।
जब सेवा नहीं दे पा रहे, तो क्यों दिखावा?
जनता पूछती है। क्या मृतकों की गरिमा भी अब आपके बजट और फाइलों की मोहताज हो गई है?आखिर कब तक इस वोट बैंक वाली सेवा को नाम मात्र की शोभा बनाकर रखा जाएगा? अगर यह वाहन जनता की सेवा में अक्षम हैं, तो क्या इन्हें दूसरे कामों में लगाकर दिखावे की औपचारिकता निभाई जाएगी?
जनता की स्पष्ट मांग
- स्वर्ग रथ सेवा को तत्काल प्रभाव से बंद किया जाए, या इसे पूर्ण संसाधन व स्टाफ सहित दोबारा सुव्यवस्थित किया जाए।
- इन वाहनों का यदि उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा है, तो इन्हें किसी अन्य विभाग को स्थानांतरित किया जाए।
- निगम को चाहिए कि वह जनता के अंतिम समय की पीड़ा को राजनीति का मुद्दा नहीं, सेवा का धर्म माने।
वक्तव्य नहीं, व्यवस्था चाहिए
स्वर्ग रथ सेवा शुरू करते समय बड़े-बड़े दावे किए गए थे गरीबों को अंतिम यात्रा में सुविधा सम्मान के साथ विदाई। लेकिन हकीकत में यह सेवा सिर्फ प्रतीक्षा, विलंब और अपमान का प्रतीक बन गई है।
क्या कहता है जन मानस?
हमने सोचा था कि अंतिम समय में नगर निगम सहारा देगा, लेकिन एक घंटे तक रथ का इंतज़ार करते रहे। अंततः निजी गाड़ी से शव ले जाना पड़ा। ये कैसा सम्मान?
– राजकुमार यादव, मृतक के परिजन


