सपनों का तालाब आज बदहाली का आईना बना, नगर निगम की बेरुखी से उजड़ने की कगार पर ऐतिहासिक स्थल
रीवा।
जिस रानी तालाब को कभी रीवा शहर की शान और विधायक राजेंद्र शुक्ल का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा गया वह अब उपेक्षा अव्यवस्था और जर्जरता की कहानी बनकर रह गया है। लगभग दो करोड़ रुपये खर्च कर बनाए गए इस आकर्षक स्थल को अब कोई संभालने वाला नहीं बचा।

जहां कभी सुबह.शाम लोग सुकून की साँसें लेने आते थे आज वहां झाड़-झंखाड़ गंदगी और असामाजिक तत्वों का अड्डा नजर आता है।
2006 में हुआ था भव्य लोकार्पण
विधायक बनने के बाद रानी तालाब का सौंदर्यीकरण राजेंद्र शुक्ल का पहला और सबसे भावनात्मक प्रोजेक्ट था। डेढ़ किलोमीटर लंबा पाथवे, सुंदर पार्क, बैठने के स्थान, बोटिंग सुविधा, और सौर ऊर्जा से रोशन होने वाली सोलर लाइटें सब कुछ बेहद आकर्षक और जनप्रिय बना।
दूर- दराज से लोग यहां पिकनिक मनाने आने लगे। विपक्ष भी इस योजना की प्रशंसा करने से नहीं चूका। नगर निगम ने पार्किंग व कैन्टीन का ठेका देकर निजी सहभागिता को बढ़ावा दिया। इस प्रोजेक्ट ने रीवा को एक नई पहचान दी थी।
अब नहीं बची पहले जैसी रौनक
ड्रीम प्रोजेक्ट बन गया डार्क स्पॉट लेकिन बीते चार- पांच सालों में नगर निगम ने इस प्रोजेक्ट से नज़रें फेर लीं। न निगरानी बची, न मरम्मत, न रख- रखाव।
स्थिति अब भयावह है
- पार्क उजड़ रहा है हरियाली खत्म हो रही है।
- झाड़- झंखाड़ पूरे परिसर में फैल गए हैं रास्ते गायब से हो गए हैं।
- बिजली के खुले तार पाथवे में फैले हैं।
- किसी दिन बड़ा हादसा हो सकता है।
- सोलर लाइटें बंद हैं परिसर अंधेरे में डूबा रहता है।
- तालाब की सुरक्षा जाली चुरा ली गई।
- मछलियों की अवैध शिकार की घटनाएं बढ़ गई हैं।
- परिसर में असामाजिक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता है।
अंत में
सपनों की जगहों को टूटने में वक्त नहीं लगता, अगर उन्हें संवारा न जाए।
रानी तालाब रीवा के चेहरे का तिलक था, अब वही धूल में दब रहा है।
सवाल यह है क्या हम बस देखेंगे या कुछ करेंगे भी?


