रीवा और पूरे प्रदेश में स्ट्रीट डॉग्स (आवारा कुत्तों) के बढ़ते आतंक पर लगाम लगाने के लिए अब नसबंदी अभियान से राहत मिलेगी।
रीवा।
शहर की गलियों और कॉलोनियों में आवारा कुत्तों का आतंक दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। प्रदेश के कई जिलों में नगर निगम और नगर पंचायतें इन बेजुबानों की आबादी पर नियंत्रण के लिए नसबंदी अभियान चला रही हैं।
इसी कड़ी में, रीवा नगर निगम ने 40 लाख रुपये की लागत से कुत्तों की नसबंदी कराने का निर्णय लिया है। इसके लिए टेंडर प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।
हालांकि, सूत्रों के मुताबिक, जिस एजेंसी को टेंडर मिला है वह पहले कई जगहों पर कथित तौर पर गड़बड़ी कर चुकी है।
नसबंदी अभियान की प्रक्रिया:
आवारा कुत्तों की नसबंदी एक व्यवस्थित पशु चिकित्सा प्रक्रिया है। इसमें निम्न चरण शामिल हैं:
- कुत्तों को सुरक्षित तरीके से पकड़ना।
- योग्य पशु चिकित्सकों द्वारा नसबंदी करना।
- आवश्यक वैक्सीनेशन (जैसे रेबीज) देना।
- सर्जरी के बाद कुछ दिन तक निगरानी में रखना।
- पूरी तरह ठीक होने के बाद उसी स्थान पर छोड़ देना।
आवश्यक संसाधन:
इस अभियान को सफल बनाने के लिए इन संसाधनों की जरूरत पड़ेगी:
- ट्रेंड स्टाफ, पशु चिकित्सक, सहायक और पकड़ने वाली टीम।
- सर्जरी यूनिट, ऑपरेशन थिएटर, एनेस्थेसिया और सर्जिकल उपकरण।
- वाहन, कुत्तों को पकड़ने और लाने-ले जाने के लिए अस्थायी आश्रय।
- सर्जरी के बाद निगरानी के लिए वैक्सीन और दवाएं, आदि।
नसबंदी से होने वाले लाभ:
इस कार्यक्रम के निम्नलिखित महत्वपूर्ण लाभ होंगे:
- स्ट्रीट डॉग्स की अवांछित जनसंख्या पर नियंत्रण।
- कुत्तों के काटने की घटनाओं में कमी, जिससे बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
- रेबीज और अन्य बीमारियों के फैलाव पर नियंत्रण।
- कुत्तों के व्यवहार में सकारात्मक बदलाव (आक्रामकता में कमी)।
- मानव और पशु के बीच के टकराव को कम करना।
संभावित नुकसान और चुनौतियां:
- यदि प्रक्रिया मानकों के अनुसार नहीं हुई तो संक्रमण या मृत्यु का खतरा रहता है।
- नसबंदी के बाद सही देखभाल न हो तो कुत्तों में परेशानी हो सकती है।
विशेषज्ञों की राय:
विशेषज्ञों के अनुसार, नसबंदी कार्यक्रम अगर सही मानकों के साथ चले तो यह आबादी नियंत्रण का सबसे मानवीय और प्रभावशाली तरीका है। हालांकि, कड़ी निगरानी जरूरी है ताकि प्रक्रिया में किसी भी तरह की लापरवाही न हो।


