रीवा।
सरकारी नौकरी से रिटायरमेंट को जिंदगी का सुनहरा पड़ाव माना जाता है, लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन प्रकरण (Pension Case) और पीपीओ (Pension Payment Order) के लिए महीनों तक दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। कई बार तो यह संघर्ष एक साल तक खिंच जाता है।
पीपीओ में देरी से बढ़ी परेशानी
नियम के अनुसार पीपीओ रिटायरमेंट से एक माह पहले बन जाना चाहिए ताकि अगले महीने से पेंशन जारी हो सके। लेकिन हकीकत में विभागीय स्तर पर फाइलें महीनों अटकी रहती हैं। सेवानिवृत्त कर्मचारी अपने ही दफ्तर में बाबुओं और अधिकारियों के सामने गिड़गिड़ाने को मजबूर होते हैं।
सेवानिवृत्त कर्मचारियों का आरोप
बिना पैसे फाइल आगे नहीं बढ़ती।
कुल सेवानिवृत्ति राशि का लगभग 1% कमीशन हर स्तर पर लिया जाता है।
जिला कोषालय में भी फाइल तभी आगे बढ़ती है जब “सेटिंग” हो।
कई कर्मचारी सालों तक पीपीओ से वंचित रहते हैं।
विभागवार हालात
स्वास्थ्य विभाग में तीन और वन विभाग में दो प्रकरण लंबे समय से लंबित।
एक नर्स को तो 2 साल तक पीपीओ नहीं मिला, बाद में तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान के हस्तक्षेप से आदेश जारी हुआ।
रिटायरमेंट प्रक्रिया के नियम
12 माह पहले – सेवा पुस्तिका और व्यक्तिगत जानकारी अपडेट।
6 माह पहले – पेंशन फॉर्म व नामांकन फॉर्म भरवाना।
4 माह पहले – जीपीएफ, ग्रेच्युटी, लोन बकाया और क्लियरेंस रिपोर्ट तैयार।
2 माह पहले – दस्तावेज़ संभागीय पेंशन कार्यालय को भेजना।
1 माह पहले – पीपीओ तैयार कर विभाग को भेजना।
रिटायरमेंट के दिन – पीपीओ कर्मचारी को सौंपना।
अगले महीने – पहली पेंशन बैंक खाते में आना।
सिस्टम की खामियां
फाइलों की भौतिक जांच और हस्ताक्षर में अनावश्यक देरी।
हर शाखा में सौदेबाजी और कमीशनखोरी।
डिजिटल प्रक्रिया होने के बावजूद मैनुअल अनुमोदन।
कर्मचारी की जानकारी के बिना फाइल अटकाना।
नतीजा
पेंशन शुरू होने में 6 महीने से 1 साल तक की देरी होती है, जिससे कर्मचारी आर्थिक और मानसिक संकट में फंस जाते हैं।
बीएस जामोद, कमिश्नर रीवा संभाग

मीटिंग के दौरान लगातार विभागीय अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों के प्रकरण समय पर निपटाएं। यदि इसके बाद भी लापरवाही की जाती है और शिकायत मिलती है तो जिम्मेदार अधिकारियों-कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।


