रीवा।
हर दिन इस शहर में करीब 120 टन कचरा निकलता है। सुनने में यह सिर्फ एक आंकड़ा लगता है लेकिन सोचिए यही कचरा सड़क पर फेंका जाए, पड़ोसी की दीवार के पास या खाली प्लॉट में तो यह शहर क्या सांस लेने लायक बचेगा? सरकारें बदलती रहीं, नीतियां बनती रहीं।
डोर टू डोर कचरा कलेक्शन, लिटरबिन, कचरा प्लांट, स्वच्छ भारत मिशन और करोड़ों रुपए की योजनाएं सब कागजों पर हैं। सच्चाई यह है कि जनता अगर साथ न दे तो गांधीजी के द्वारा साफ-सफाई के लिए उठाए गए झाड़ू भी बेअसर हो जाते हैं।

रीवा नगर निगम के सहयोग से अब इस शहर के कचरे का उपयोग करके खाद और पहड़िया में विद्युत उत्पादन किया जा रहा है। यानी जो कचरा कुछ लोगों के लिए झंझट है वही शहर के लिए संपत्ति बन चुका है। पर यह तस्वीर अधूरी है। क्योंकि दूसरी तरफ लोग आज भी बेझिझक कूड़ा सड़क पर या दीवार के पीछे फेंक देते हैं।
जैसे सफाई केवल नगर निगम की जिम्मेदारी हो, उनका खुद से कोई लेना-देना न हो।
स्वच्छ भारत मिशन, करोड़ों की योजनाएं फिर भी गंदगी
हर जिले में इस अभियान पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं। लिटरबिन लगाए जा रहे हैं। गाड़ियां चलाई जा रही हैं। पब्लिक अनाउंसमेंट्स हो रहे हैं। फिर भी साफ-सफाई जमीनी हकीकत क्यों नहीं बन पा रही, यह सवाल हर व्यक्ति की जुबान पर रहता है।
क्योंकि कहीं न कहीं सिस्टम में लापरवाही और कमीशनखोरी है। कचरा उठाने गाड़ी आती है या नहीं, कोई देखने वाला नहीं। साथ ही जनता का रवैया भी कुछ ठीक नहीं। कचरा घर में है तो फेंक दो बाहर यही सोच हमें पीछे ले जा रही है।
शहर को साफ रखना केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, यह हर नागरिक का धर्म है।
63 गाड़ियां घर-घर कचरा उठाव में लगी
नगर निगम की मानें तो घर-घर कचरा उठाव के लिए 63 गाड़ियां लगी हुई हैं। ये गाड़ियां कचरा उठाव करने सही समय पर जा रही हैं या नहीं, कोई देखता है क्या? आए दिन कचरा उठाने वाली कंपनी की गाड़ियां खराब रहती हैं। कचरा उठाव करने वाली कंपनी पर आए दिन आरोप लग रहे हैं।
साफ-सफाई के लिए इस तरह देना होगा ध्यान
बच्चों को साफ-सफाई का महत्व सिखाएं।
नगर निगम को देखना होगा कि क्या डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन सही से हो रहा है।
क्या लिटरबिन खाली हो रहे हैं।
क्या जनता को सही जानकारी कचरा प्रबंधन को लेकर दी जा रही है।


