गांव की चौपाल से डिजिटल ऐप्स तक का रिश्ता, शादी अब सादगी नहीं, आधुनिकता का किस्सा।
कभी वक़्त था जब किसी लड़के के विवाह योग्य होने का पैमाना उसका वेतन या डिग्री नहीं, बल्कि उसकी बैलों की संख्या और खेत की उपज हुआ करती थी। गाँव के गलियारों में रिश्ता तय करने से पहले यह पूछा जाता था—”कुएँ वाला घर है या बिना कुएँ का?” छत पक्की है या खपरैल? गाय दूध दे रही है या नहीं?
“कितने बैल हैं आपके पास?”
“चार हैं, जी!”
“तो रिश्ता पक्का समझिए!”
जी हाँ, एक ज़माना ऐसा भी था जब यही बातचीत शादी के लिए काफ़ी होती थी। लड़के की सामाजिक प्रतिष्ठा का अंदाज़ा उसके खलिहान की लंबाई, घर के कोने में बैठा बुढ़ा बैल और आँगन में बने कुएँ से लगाया जाता था। तब ‘बायोडेटा’ का नामोनिशान नहीं था, और दूल्हा-दुल्हन की पहली मुलाकात भी अक्सर सात फेरों के वक़्त ही होती थी।
नई पीढ़ी, नई प्राथमिकताएँ
समय बदला है और उसके साथ बदल गई हैं प्राथमिकताएँ भी। अब न कुएँ की चिंता है, न खलिहान की। अब सवाल होता है “लड़के के पास कार है या नहीं?”
खेती की उपज की जगह अब CTC पूछी जाती है—”12 LPA है या सिर्फ़ 8?”
बैल की जगह अब फ्लैट कहाँ है? खुद का है या किराये का? ये तय करता है कि रिश्ता आगे बढ़ेगा या नहीं।
जहाँ पहले रिश्ते माता-पिता की सहमति से तय होते थे, आज वो ‘क्लिक’ से शुरू होते हैं—डिजिटल दुनिया की ‘क्लिक’। डेटिंग ऐप्स पर बातचीत, फिर वेडिंग ऐप्स पर मैचिंग, और अंत में एक समारोह जिसे अब सिर्फ़ औपचारिकता माना जाने लगा है।
बदलाव: ज़रूरी, मगर क्या कीमत पर?
निस्संदेह, यह बदलाव आधुनिकता की निशानी है। आज का युवा अपनी पसंद और निर्णयों में स्वतंत्र है, जो स्वागतयोग्य है। लेकिन इसी बदलाव के बीच, रिश्तों में से कहीं वो सादगी, अपनापन और भरोसे की खुशबू गुम होती जा रही है, जो पहले की पीढ़ियों में सहज रूप से मौजूद थी।
पहले रिश्ते “बनाए जाते थे”, अब “मैच किए जाते हैं।” यह वाक्य आज की सामाजिक सच्चाई को बहुत सरलता से बयान करता है।
युवा पीढ़ी के नाम एक संदेश
पुरानी व्यवस्था में भले ही कई कमियाँ रही हों, लेकिन उसमें रिश्तों की आत्मा थी संवेदनशीलता और परस्पर सम्मान। आज की युवा पीढ़ी को चाहिए कि वो आधुनिक सोच के साथ-साथ उन मूल्यों से भी जुड़ी रहे, जो रिश्तों को टिकाऊ और सार्थक बनाते हैं।
न बैल चाहिए, न कुआँ – लेकिन वो सरलता और अपनत्व ज़रूर चाहिए, जो बिना कहे दिलों को जोड़ देता है।
समय बदला है, सोच बदली है – लेकिन अगर इस बदलाव में संवेदना और आत्मीयता खो जाए, तो यह प्रगति नहीं, महज़ एक लेन-देन बनकर रह जाती है।
शादी आज भी एक पवित्र बंधन है। इसे सिर्फ़ बायोडेटा, EMI और प्रॉपर्टी लोकेशन से नहीं, दिल, समझदारी और विश्वास से तय किया जाना चाहिए।


